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हाल ही में क्षेत्रीय से राष्ट्रीय दल बने आम आदमी पार्टी (आप) ने बड़ी करवट ली है। अब तक भाजपा और कांग्रेस से बराबर की दूरी बनाकर चलती रही अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने 2024 लोकसभा चुनाव से पहले अहम फैसला किया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने उस महागठबंधन का हिस्सा बनना स्वीकार किया जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ा दल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली केंद्र सरकार को हटाकर जनता को महंगाई-बेरोजगारी से राहत दिलाने की बात कहते हुए केजरीवाल ने कहा कि वह नीतीश कुमार की पहल के साथ हैं।
महागठबंधन में ‘आप’ की कितनी हिस्सेदारी होगी और अरविंद केजरीवाल की भूमिका क्या होगी? कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी जैसे दलों के साथ जुड़ने से फायदा होगा या नुकसान? इस तरह के तमाम सवाल पूछे जाने लगे हैं। हालांकि, केजरीवाल ने पहले दिन ही मीडिया से कहा कि सभी सवालों के जवाब एक शाम ही नहीं दिए जा सकते हैं। धीरे-धीरे बात आगे बढ़ेगी और सवालों के जवाब सामने आएंगे। यह बात उन्होंने उस सवाल के जवाब में कही जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या नीतीश कुमार ‘पीएम मैटेरियल’ हैं। नीतीश ने जहां इस सवाल पर आपत्ति जताई तो केजरीवाल भी इसे टाल गए।
महागठबंधन से जुड़ने पर क्या फायदा?
महागठबंधन का हिस्सा बनने से 2024 के लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को कितना फायदा होगा, इसका सही जवाब तो काउंटिंग के बाद ही पता चलेगा। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अभी लोकसभा में शून्य सीट वाली ‘आप’ के पास इस लड़ाई में खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, लेकिन पाने को बहुत कुछ है। दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने के बावजूद लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई है। पंजाब में भी पिछले लोकसभा चुनाव में महज 1 सीट मिल पाई थी, जो सरकार बनने के बाद उपचुनाव में गंवा दी। ऐसे में पार्टी रणनीतिकारों को उम्मीद है कि विपक्षी वोटों की गोलबंदी से वह अपने हिस्से आने वाली सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। माना जा रहा है कि महागठबंधन चुनाव तक कायम रहा तो ‘एक सीट एक उम्मीदवार’ के फॉर्मूले के तहत पार्टी को दिल्ली और पंजाब की अधिकतर सीटें पर उम्मीदवार उतारने का मौका मिल सकता है और भाजपा विरोधी वोट एकमुश्त मिलने पर जीत भी मिल सकती है।
नुकसान क्या?
2024 के लोकसभा चुनाव में ‘आप’ को भले ही कुछ लाभ की उम्मीद हो लेकिन कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा बनने पर पार्टी को इसी साल कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। कर्नाटक के बाद ‘आप’ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश में जहां भाजपा की सरकार है तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पास सत्ता है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी लड़ाई है और ‘आप’ तीसरे विकल्प के रूप में खुद को पेश करके समर्थन मांगेगी। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के नजदीक दिखना और राज्य में कांग्रेस के खिलाफ वोट मांगना, कुछ मुश्किलें पैदा कर सकता है। इस विरोधाभास को जनता को स्वीकार कराना आसान नहीं होने वाला है।
क्यों भाजपा होगी खुश?
विपक्षी गठबंधन की हर कोशिश को भाजपा यह कहकर विफल बताती है कि ‘प्रधानमंत्री कौन’ के सवाल पर एकता खत्म हो जाएगी। इस बार भी शायद उसे ऐसी ही उम्मीद हो। हालांकि, केजरीवाल के कांग्रेस गठबंधन के साथ जुड़ने से भाजपा को घेराबंदी का एक मौका जरूर मिल गया है। अब तक कांग्रेस ‘आप’ को बीजेपी की ‘बी टीम’ बताती रही है तो भाजपा कहती है कि केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस की ‘बी टीम’ है। ऐसे में भाजपा कांग्रेस और ‘आप’ को एक दूसरे की सहयोगी पार्टी बताना आसान हो जाएगा। भाजपा के एक नेता ने नाम गोपनीय रखने की अपील करते हुए कहा, ‘गठबंधन कब तक कायम रहेगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन जनता ने फिलहाल यह तो देख लिया है कि केजरीवाल को कांग्रेस से गुरेज नहीं। वह अपने फायदे के लिए उस कांग्रेस से हाथ मिलाने को तैयार हैं जिसके खिलाफ आंदोलन चलाकर पार्टी बनाई थी। महागठबंधन के बावजूद लोकसभा चुनाव में भाजपा को जीत मिलेगी और विधानसभा चुनाव में ‘आप’ को नुकसान होगा।’ हालांकि, 2013 में भी ‘आप’ कांग्रेस के सहयोग से 49 दिन की सरकार चला चुकी है। अपने राजनीतिक कौशल से केजरीवाल ने कांग्रेस से दोबारा पर्याप्त दूरी बना ली और दिल्ली के बाद पंजाब भी कांग्रेस से ही छीना।