किसानों की पीड़ा को राहत नहीं, राजनीतिक चमकाने का हथियार बना लिया : निलय डागा
विधायक की पुरानी आदतों से किसान व्यापारी परेशान, पहले उलझाओ फिर सुलझाने का श्रेय
किसानों को पहले आरटीजीएस में उलझाया, अब नकद भुगतान पर ली जा रही वाहवाही
बैतूल। बैतूल की राजनीति में अब यह ट्रेंड बन गया है, पहले किसानों को योजनाओं से परेशान करो, फिर पुरानी व्यवस्था को दोबारा लागू कर श्रेय लेने की होड़ लगाओ। किसानों की जेब और सब्र दोनों को कसौटी पर कसने के बाद अब सत्ताधारी नेताओं ने किसान हितैषी बनने की कवायद शुरू कर दी है। मामला है कृषि उपज मंडी का, जहां पिछले वर्ष तक किसानों को दो लाख रुपये तक की राशि नकद दी जाती थी, लेकिन पारदर्शिता के नाम पर आरटीजीएस की व्यवस्था लागू कर दी गई।
इस निर्णय से किसानों की मुश्किलें कई गुना बढ़ गईं। उपज बेचने के बाद भुगतान सीधे खाते में आने के बजाय कभी बैंक की तकनीकी खराबी तो कभी फंड ट्रांसफर की प्रक्रिया में देरी जैसी वजहों से किसान हफ्तों तक राशि का इंतजार करते रहे।
अब जब किसान अपनी समस्या लेकर आवाज उठाने लगे, आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हुई, तब जाकर मंडी में दो लाख तक नकद भुगतान की पुरानी व्यवस्था फिर से लागू की गई। लेकिन समस्या का समाधान होते ही राजनीतिक श्रेय की होड़ भी शुरू हो गई। सत्ता पक्ष के नेताओं ने इसे किसान हित में ऐतिहासिक फैसला बताते हुए वाहवाही लूटने की कवायद शुरू कर दी।
कांग्रेस के पूर्व विधायक निलय डागा ने इस पूरे घटनाक्रम को सत्ताधारी दल की सुनियोजित चाल बताया है। उन्होंने कहा, यह सब सत्ता में बैठे लोगों की मिलीभगत से हुआ है। पहले किसानों को आरटीजीएस के जाल में उलझाकर भुगतान से वंचित किया गया और अब उसी को वापस लाकर श्रेय लिया जा रहा है। किसान हितैषी होने का सिर्फ दिखावा किया जा रहा है।
पूर्व विधायक डागा ने यह भी आरोप लगाया कि मंडी प्रबंधन किसानों की जगह व्यापारियों को संरक्षण दे रहा है। यही कारण है कि भुगतान की प्राथमिकता किसानों की नहीं रही। जबकि शासन द्वारा स्पष्ट आदेश है कि दो लाख तक की राशि नकद दी जाए।
किसानों का भी यही कहना है कि आरटीजीएस से भुगतान होने पर कभी चार दिन तो कभी सात दिन लग जाते हैं। इस दौरान उन्हें ब्याज पर रुपये उधार लेकर अपने रोजमर्रा के खर्च पूरे करने पड़ते हैं। नकद भुगतान की पुरानी व्यवस्था उनके लिए अधिक भरोसेमंद और व्यवहारिक थी।
असल सवाल यही है कि क्या यह सचमुच किसानों की समस्या का समाधान है, या फिर एक बार फिर से श्रेय की राजनीति का दिखावटी तमाशा? अगर प्रशासन और मंडी प्रबंधन पहले दिन से ही किसानों की सुविधा को प्राथमिकता देता, तो उन्हें महीनों तक भुगतान के लिए भटकना न पड़ता।
यह दुखद है कि किसानों की पीड़ा को राहत नहीं, बल्कि राजनीतिक चमकाने का हथियार बना दिया गया है।किसानों को पहले जानबूझकर परेशान करो, फिर समाधान कर खुद को मसीहा बताओ, यह राजनीति की गिरावट का सबसे दुखद उदाहरण है।