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दिल्ली सरकार और राजभवन के बीच बिजली सब्सिडी पर एक बार फिर टकराव बढ़ सकता है। दिल्ली के एलजी वीके सक्सेना ने साफ कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल सरकार को सब्सिडी के रूप में बिजली कंपनियों को दिए गए 13,549 रुपए का ऑडिट कराना ही होगा। गरीबों को मिलने वाली मुफ्त बिजली दिए जाने का समर्थन करते हुए एलजी ने कहा है कि कंपनियों को जो सब्सिडी दी गई है, उसका हर हाल में ऑडिट होना चाहिए ताकि बिजली सब्सिडी में अगर कहीं भी चोरी हो रही है तो उसे रोका जा सके।
उपराज्यपाल ने विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 को लागू नहीं करने पर केजरीवाल सरकार से तीखे सवाल पूछे हैं। इस अधिनियम के तहत डीईआरसी (दिल्ली इलेक्ट्रीसिटी रेग्युलेटरी कमिशन) द्वारा बिजली कंपनियों का ऑडिट करना अनिवार्य है। राजभवन की ओर से दी गई सूचना के मुताबिक, एलजी ने इस बात को स्पष्ट तौर पर कहा कि CAG द्वारा पैनलबद्ध ऑडिटर्स को कैग ऑडिट के विकल्प के रूप में नहीं माना जा सकता।
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने निजी बिजली कंपनियों को दी गई 13,549 करोड़ रुपये की सब्सिडी के ऑडिट कराने से बचने के लिए आप सरकार की जमकर आलोचना की है। यह सब्सिडी 2016 से 2022 के दौरान दी गई। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी है कि यह किसी निहित स्वार्थ वाले या धन चोरी करने वाले के हाथों में न जाए बल्कि इसका लाभ लक्षित आबादी तक पहुंचे।
एलजी की ओर से कहा गया है कि आप सरकार ने बिजली कंपनियों के खातों के ऑडिट कराने में काफी लापरवाही बरती है। सरकार ने 2015 में डीईआरसी से बिजली कंपनियों के खाते का ऑडिट कराने के लिए कह तो दिया लेकिन इस मुद्दे पर काफी उदासीन रही जबकि वह विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 को लागू कर सकती थी। उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे अपनी फाइल में कहा है, ‘आश्चर्य की बात यह है कि दिसंबर 2022 में काफी देर से विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 के तहत विभाग ने डीईआरसी को ऑडिट करने के लिए कहा लेकिन इससे भी बड़ी आश्चर्य की बात यह रही कि 27 जनवरी 2023 को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया।’
उपराज्यपाल ने कहा ‘सबसे पहले मुझे इस बात पर घोर आपत्ति है कि जनता के 13,549 करोड़ रुपये का पिछले 6 वर्षों से ऑडिट नहीं किया गया है। इतने अधिक सार्वजनिक धन को, बिना किसी ठोस जांच के कि गरीबों के लिए तय की गई यह सब्सिडी लक्षित आबादी तक पहुंच रही है या नहीं, निजी बिजली वितरण कंपनियों को दे दिया गया। मुझे तब और ज्यादा हैरानी हुई जब सरकार को विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 के तहत डीईआरसी से विशेष ऑडिट करवाने के लिए अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने में 6 साल का लंबा समय लग गया। इन 6 वर्षों में कैबिनेट ने बहुत लापरवाही से काम किया क्योंकि 6 साल से डीईआरसी से ऑडिट कराने के लिए कहा जाता रहा लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’
एलजी ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज की कि बिजली कंपनियों के खाते का कैग से ऑडिट कराने संबंधी मामला पिछले 7 साल से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। उपराज्यपाल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जो फाइल उपलब्ध कराई है उसमें किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को जल्दी सुलझाने में सरकार की मंशा नहीं दिख रही है। दरअसल, 2015 में दिल्ली हाईकोर्ट ने बिजली कंपनियों के कैग द्वारा ऑडिट कराने के दिल्ली सरकार के आदेश को रद्द कर दिया था। दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ 2016 में अपील दायर की थी लेकिन तब से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।